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केदारनाथ की दुखद यात्रा

आज जब हुआ सवेरा मेरे मन को प्रसन्ता ने घेरा, जाना था उतराखंड हमें आज तज़ी वादियों में करना था काज मन ही मन खुश था मैं  हो रहा था तैयार , क्या लूँ ? क्या न लूँ ? कर रहा था यही विचार जून का महीना था मौसम था गर्मी आज का, सोचते - सोचते यह बात कट गया रास्ता जर्नी का असली मुश्किल तब आई जब हो रही थी वर्षा, डूब रहा था केदारनाथ पूरा उतराखंड तरसा खबर आई टी.वी.पर कि बाढ़ आई केदारनाथ में, सौ-सौ लोग मर चुके थे एक ही रात मे  ठण्ड से मर रहे थे लोग कुछ मरे थे भूख से, तड़प तड़प के आंसू बहाकर मदद की पुकार दुःख से जब देखा घर के बाहर चारो ओर लाशें पड़ी थी, पानी पानी हर जगह बचाओ बचाओ शोर चढ़ी थी  दिल्ली मंबई कोलकाता  ने शुरू किया राहत अभियान, अभी तो बचाने थे लाखो लोगो के प्राण  भारतीय सैनिक भी लग गए थे काम में, चौबीस घंटे चालू थे क्योंकि खतरा था आराम में  हमतो सही सलामत लौट आये थे घर को, पर उनके लिए दुःख था जो मरे पल भर को  क्या डरावने दिन थे वो जब दुःख का आंसू पिया था, लोगो ने यह सुनके बस शोक ही किया 

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